कभी शर्माती तो कभी इठलाती या कभी बस हां कहकर दिल में एक छाप छोड़ जाती। किन पन्नों में ढूंढू इनका नाम ? क्योंकि ये तो सीधे दिल में घर बनाती या कभी बस, एक हां में ही सबकी पहचान बन जाती। Shalvi Singh
एक सादगी भरी शाम हो तुम नीले आसमां में जो ढूंढू कहती एक वाक्या में सिमटी भेजा हुआ वो पैगाम हो तुम। Shalvi Singh
हर शब्द में अल्फ़ाज़ तो होते हैं, पर कभी- कभी हर अल्फ़ाज़, हम तक वक़्त रहते नही पहुँच पाते या हम ही उसे नज़र अंदाज़ कर बैठते हैं? हाँ या न... कुछ नही जानते। लेकिन परिणाम स्वरूप भुगतान जरूर भुगतते हैं। हम माँ- बाप के लाडले बच्चे, उनको बहुत प्यारे होते हैं। लेकिन ये बात हम क्यों नही समझते? और अगर नही समझते तो इसके परिणाम स्वरूप कुछ ऐसा झेलते, जो हमें सुधरने का दुबारा कभी मौका नही मिलता। Shalvi S
हर शब्द में अल्फ़ाज़ तो होते हैं, पर कभी- कभी हर अल्फ़ाज़, हम तक वक़्त रहते नही पहुँच पाते या हम ही उसे नज़र अंदाज़ कर बैठते हैं? हाँ या न... कुछ नही जानते। लेकिन परिणाम स्वरूप भुगतान जरूर भुगतते हैं। हम माँ- बाप के लाडले बच्चे, उनको बहुत प्यारे होते हैं। लेकिन ये बात हम क्यों नही समझते? और अगर नही समझते तो इसके परिणाम स्वरूप कुछ ऐसा झेलते, जो हमें सुधरने का दुबारा कभी मौका नही मिलता। Shalvi S
कि बहुत सालों बाद, ये ख़ुमार मैंने दिल में बसाया है। की मैं भी किसी को इस कदर चाह सकती हूँ। की मैं भी किसी को अपना बना सकती हूँ। आज बहुत सालों बाद ये ख़ुमार मेरे चेहरे पे नही दिख रहा, क्योंकि इस बार मैंने इन्हें अपने दिल में बसाया है। बस! ऐसा मानों की तुम्हें गले लगाया है। हाँ! गले लगाया है। शालवी सिंह @iwrit_ewhatyouthink
कि बहुत सालों बाद, ये ख़ुमार मैंने दिल में बसाया है। की मैं भी किसी को इस कदर चाह सकती हूँ। की मैं भी किसी को अपना बना सकती हूँ। आज बहुत सालों बाद ये ख़ुमार मेरे चेहरे पे नही दिख रहा, क्योंकि इस बार मैंने इन्हें अपने दिल में बसाया है। बस! ऐसा मानों की तुम्हें गले लगाया है। हाँ! गले लगाया है। शालवी सिंह @iwrit_ewhatyouthink