शोक भरे उर में रघुनंदन, ताक रहे हनुमान न आये | देख दशा निज भ्रात दयानिधि, सोच रहे जयगान न आये | सूख गया दृग नीर गया बह, आज बिना कपि प्रान न आये | पीट रहे हृद जोह रहे पथ, आज अभी सुख खान ने आये || ✍️पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'
पादप को काटकर, जीवन को छांट कर, अपने ही पथ पर, शूल तुम बो रहे। फल फूल देने वाले, विष छीन लेने वाले, तरू प्राणवायु वाले, खुद से ही खो रहे। विटप बिना ये जीवन, लगे जैसे विषवेल, शाखी काट काट कर, नियति को धो रहे।। स्वास आश सभी गाछ, खिले जिनसे ये बाछ, पहचान भावी को भी, आज तुम सो रहे। पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'