कुछ लिखा है some writing
ग़म-ए-हस्ती हैं ही कुछ ऐसी दाग़ जो लगा था आज नहीं कल भी रहेगा, फ़ितरत-ए-ज़ीस्त है ही कुछ ऐसी ज़ख़्म लगा है तो ख़ून ही बहेगा ।
मैं दोगला नहीं आधा हूँ शायद, सच लिखता तो हूँ मगर कहता नहीं।