मैं उत्कर्ष खरे, पेन नेम ‘मुसाफ़िर’। मैं एक शायर हूँ, मुझे नज़्म लिखने का काफ़ी शौक़ है। आप मेरी लिखी कुछ नज़्में रेख़्ता पर भी पढ़ सकते हैं। मेरी पहली किताब ‘इक पोशीदा दरिया नज़्मों का’ जो कि इसी साल लाँच हुई है। अमेज़न पर उपलब्ध है।
इस नज़्म के ज़रिये मैं एक मज़दूर की मानसिक दशा व्यक्त कर रहा हूँ। इस नज़्म के ज़रिये मैं एक मज़दूर की मानसिक दशा व्यक्त कर रहा हूँ।