Sanju Srivastava
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I am from the teaching community, reading and writing is my passion

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कल रात यहाँ मेज़ सजा था , आज वीरानी छायी है। मेहमान भर पेट खा कर विदा हो गये, पर, खाली पेट घूम रहे लोगों के , खाने को अब केवल झूठे पत्तल रह गये।

आज चाय की प्याली में तेरा अक्स नजर आया । पर एक सिगरेट का कश लेते ही तू बस धुआँ धुआँ हो गया ।

कौन कहता है कमबख्त , कि उनकी याद आती नहीं, पर हम हो गये हैं इतने शातिर, कि ये बात जतलाते नहीं।

आज समंदर किनारे , रेत में बनाए तुम्हारे रेत के महल की याद आ गई। न अपना घर बसा पाए और न मेरा आशियाना बसने दिया।

वक्त बेवक्त यूं न आया करो याद, भूलना हमें भी अब आ गया है, वक्त ने सिखा दिया है, यादों से बाहर निकलना ।

यूं ही रोज चलते चलते , जिंदगी से मुलाकात हो जाती है, कहती है चलो साथ साथ चलते हैं, हँस कर टाल देता हूं कि, बेवफा से वफा की चाह कैसे कर सकता हूं।

वो, बारिश की बूंदो को , अपनी हथेलियों में समेटना, फिर उन बूंदो को , मेरे चेहरे पर छिड़क कर खिलखिलाना, आज कि बारिश में न चाहते हुये भी, उफ,फिर तेरी याद आ गई । #संजू


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