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परदेसियों का इश्क़

परदेसियों

इश्क़ की कोई परिभाषा नहीं होती, और ज़रूरी तो नहीं जो इश्क़ मुक्कमल न हुआ हो वो इश्क़ नहीं ? इस कविता में दो परदेसियों के इश्क़ की दास्ताँ मौजूद है जो अपने इश्क़ को दुनिआ को समझाना चाहते हैं | आइए और जानते है उनका क्या कहना है |

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ज़ख़्म की दास्ताँ

जब हमारे ज़ख़्म एक से हों और हमारे दर्द की दास्ता

आइना

एक आइना ही तो है जो सब सच बताता है, हमारे और आप

परदेसियों का इश्क़

इश्क़ की कोई परिभाषा नहीं होती, और ज़रूरी तो नहीं

कहानी ईमारत की

कुछ इमारतें जो बंज़र हो जाया करती हैं ज़रूरी नहीं

फुर्सत के वो दिन

इस ज़िन्दगी की भाग दौड़ में दिल की बस एक ही आरज़ू