नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया_हकी़क़ते
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ म
ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते है
तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ