गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख
मेरा वतन वही है...!!!
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ू-मंदी !!!
वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझ को सिखा गया है जुनूँ..
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी..
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
न तख़्त ओ ताज में ने लश्कर ओ सिपाह में है
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र ओ नाज़ नहीं
अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़लाक में है....
दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर...
ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया_हकी़क़ते
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं....
मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मकाम से गुज़र
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
जुगनू
ख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
गेसू-ए- ताबदार को और भी ताबदार कर
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में<
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र
क्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ
अजब वाइज़ की दीन-दारी है या रब
न आते हमें इसमें तकरार क्या थी
फिर चराग़े-लाला से रौशन हुए कोहो-दमन
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ म
ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते है
है कलेजा फ़िगार होने को...
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द...
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी...
परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये...
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं...
तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो...
नसीहत...
सफ़र कर न सका...
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा...
ऐ हिमाला ऐ फ़सीले किश्वरे-हिन्दोस्ताँ !!!
एक आरज़ू !!!...
तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर निकले...
डरते-डरते दमे-सहर से..!!!
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा...
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी...
असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद..