वसंत का विश्वास
वसंत का विश्वास
आज फिर वसंत रो रहा था।
वसंत पंचमी में सारे बच्चों के पतंग उड़ाते खिड़की से देखते रह गया। अपने पांव की लाचारी के चलते मन मसीज कर १० साल की उम्र में ५० का महसूस करता है।
पास खड़ी बड़ी बहन खुद आंसू रोक न पायी पर सीने से लगा कर गुदगुदी करते हुये छेड़ने लगी।
“मेरे छोटे भैया,
मेरे प्यारे भैया
चल पतंग उड़ायें”
वसंत भड़ककर कली के धक्का मारता हुआ रोने लगा
“हटो दीदी,मेरा मूड मत खराब करो।
पाव खराब, तुम खराब,सब खराब,किस्मत खराब।”
मां ने रोना सुना तो दौड़कर आई और सीने से लगा कर वसंत को प्यार से चुप कराने लगी।
समझा बुझाकर हर बार की तरह लोरी गाकर उसे सुलाकर वो सो गयी।
नींद में पिछले दिन की वसंत पंचमी में शिवानी जी की बात याद आई कि जो सोचो विश्वास से वो होता है।
मन में है विश्वास तो सच की ताकत आज़माओ।
सोचा चलो भगवान से विश्वास का नाता रखें फिर बाकी तो कर ही रहें हैं।
अब उसने कली व वसंत को भी सारी मन की बात बताई और उन्हें भी वसंत को छत पर पतंग उड़ाते हुए खुली आखों से सोचने व ऐसी ही बात करने को कहा।
पहले पागल हो गई कहकर मनोज ने हंसकर प्रतिक्रिया करने पर बच्चों का चेहरा उतर गया देख नीता ने गुजारिश की ।
एक बार सब को आखिर विश्वास करने के मनाया।
सब परिवार वसंत के खातिर वैसा ही बर्ताव करने लगे कि पतंग बनाने, फल मिठाई कपड़े उत्सव के लिये तैयार हो रहे हों।
किसी के पूछने पर हां करते हुये काम करते। वसंत को पता था कि कोशिश करनी है।उसे मन में विश्वास कर कर दिखाना होगा वो कर पायेगा ही। मां दीदी पापा के विश्वास और साथ , व्यायाम,प्रार्थना के बाद ६ महीने तक रोज प्रगती हो रही थी।
वसंत पंचमी में सच उल्लास के साथ हाथ में पतंग अपने पैर पे खड़ा पतंग उड़ा रहा था।
लोग पूछते तो हंसकर पतंग की ओर दिखाकर गाते
“होंगे कामयाब…..
वसंत की विश्वास की डोर पक्की हो गई।
उसके और परिवार में ये वसंतोत्सव हरे भरे ठंडी हवा से प्रफुल्लित गीत गा रहा था।
