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बच्चा ही अच्छा था माँ

बच्चा ही अच्छा था माँ

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शिकायतें बढ़ती गयी, तज़ुर्बा घना हो गया

बच्चा ही अच्छा था माँ मैं क्यों इतना बड़ा हो गया


मैं रोता नहीं, पर हँसना भी भूल गया हूँ

तेरे आँचल की छांव में धूप भूल गया हूँ

गोद मे सर रख कर अब क्यों नहीं सुलाती है तू

मेरा राजा बेटा कह कर क्यों नहीं बुलाती है तू

तकलीफें तुझको भी तो लाख होंगी ना माँ

सब सह लेती है मुझ को क्यों नहीं बताती है तू

मैंने तेरी उंगली पकड़ कर चलना सीखा था

चोट मुझे लगती थी तो आँसू तेरा बहता था

तेरा दुपट्टा कब फट कर मेरे मरहम हो गया 

बच्चा ही अच्छा था माँ मैं क्यों इतना बड़ा हो गया


माँ ज़िन्दगी की उलझने अब झिलती नहीं है

बहुत ढूँढता हूँ मैं पर ख़ुशियाँ मिलती नहीं है

कुछ ख्वाइशें तेरी भी तो रही होंगी ना माँ

सबकी पूरी करती, अपनी कभी कहती नहीं है

जब बुखार से मेरी पेशानी बहुत तपती थी

तेरी आँखें दरवाज़े पर मेरी राह तकती थी

तेरा दुपट्टा कब फट कर मेरे माथे पर पट्टी हो गया

बच्चा ही अच्छा था माँ मैं क्यों इतना बड़ा हो गया


भूख एक की हो, थाली में रोटी दो होती थी

मैं सोफे पर सोता था, सुबह बिस्तर पर होती थी

मैं, मैं आधी रात को यूं ही जब रोने लगता था

मुझे सूखे में सुला कर, खुद गीले में सोती थी

ठंड से जब बदन मेरा कांपने लगता था

नींद में बिस्तर पर सिलवटें बुनने लगता था

तेरा दुपट्टा कब मुझे ओढ़ कर चादर हो गया

बच्चा ही अच्छा था माँ मैं क्यों इतना बड़ा हो गया


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