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यूँ ग़ज़लें...

यूँ ग़ज़लें लिख लिख कर, अपनी तस्वीर तगाती हो तस्वीर पे ग़ज़ल लिख देंगे, हमारे ज़जबात जगाती हो। तस्वीर असली है या फिर अपना रूप छिपाती हो हम लिखना भूल चुके है, फिर नज़रों से क्यों सिखाती हो। रहीम " नादान"

By Rahim Khan
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