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यह निराशा...

यह निराशा सिर्फ मन की है जो यह समझ रहा कि सब कुछ खत्म हो चुका है। यदि मन से उस विकार को निकाल दिया जाए तो सब कुछ आशा से पूर्ण नजर आएगा। प्रद्युम्न अरोठिया

By PRADYUMNA AROTHIYA
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