“
ये मेरे चुप रहने पर जो मेरी मौजूदगी का भान नहीं होता
ये वो पड़ाव है जहां तिरस्कार अपमान नहीं होता
बस लोग अपनी अपनी कहते है
दूसरो के वजूद का ज्ञान नहीं होता
छलते है अपनी मीठी बातों से, गिर कर हद तक तलवे चाटते हैं
क्या उनके भीतर मरता कोई स्वाभिमान नही होता?
”