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ये...
ये कहां रंगों,...
ये कहां...
“
ये कहां रंगों, तारीखों में बंधता है,
कब ज़रूरत के वक्त ही उमड़ता है।
ये वतन परस्ती का जज़्बा है,
रगों में दौड़ता है, दिल में धड़कता है।
-निमिशाम्
”
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