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उसने कुछ यूं नकार दिया मुझे,
मेरे दर्द को आंखें बयां कर गई ।
अंदाज़ समझ ना सका उसका मैं
कि क्यूँ वो बीच रास्ते में बेवफाई कर गई।।
प्रेम था गहरा मेरा,
झुठला के मेरा प्यार वह अपनी सफाई भी दे गई।
ना वकील ना दलील की जरूरत,
जज बनकर वो सजा भी दे गई।।
✍ गजेंद्र कुमावत 'मारोठिया'
”