“
उलझन
ना जाने, ये कैसा माहोल हैं,
बोहोत शांति हैं, मगर बोहोत शोर हैं
की अधीरता छाई हर ओर हैं,
और उत्तेजना से सब सराबोर हैं।।
क्या किसी ने मुझे आवाज़ दिया,
क्या मेरे जीने का साज़ दिया,
की उलझनों में हैं शाएरा,
कौन हैं वो, जिसने प्यार का आगाज़ दिया।।
”