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तन्हा...

तन्हा मुसाफ़िर हूं तन्हा सफ़र है, जाने क्या होगा मेरी मंज़िल किधर है। ये रिश्ते ये नाते ये रोज़ की बातें, भीड़ में भी तन्हा ये शामों शहर है। ख़ामोश आहटें हमें ही पुकारें, दिल अपना पर इस सबसे बेखबर है। मुखातिब हुए हम ख़ुद से जब से, ढूंढती फिरती हमें हर नज़र है। ख़ुदा ने मुझे यूं मुझ से मिलाया, उसकी रहमत का ये कैसा असर है।। रचना शर्मा "राही"

By रचना शर्मा "राही"
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