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“ सृष्टि के सारे...
“ सृष्टि के...
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“ सृष्टि के सारे अपवाद हृदय में परिभाषित होते हैं जैसे बाहर का सागर जितना खारा होता है मन का सागर उतना ही मीठा I”
@कविता भट्ट ‘मनमुग्धा’
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