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*सोच भले ही नई रखना पर संस्कार पुराने ही अच्छे। हर किसी की तरह बनने की कोशिश करना बंद करना होगा केवल हम एक हैं और दूसरा कभी नहीं होगा। वास्तविक बने रहना है यही हमारी महाशक्ति है। बच्चों की ही नहीं खुद की तुलना करना भी बंद कर देना होगा। प्रेरक चरित्र बहुत सारे होने चाइये और सब से कुछ सीखते रहना चाइये। बाकी ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है जब तक हम इसे व्यवहार में नहीं लाते।*
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