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*शंकर छंन्द*
*शब्द-निर्देश*
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धरती देखो प्राण मांगती,दे रही निर्देश।
सांसो को तुम भी तरसोगे,भरे स्वार्थी देश।
देख धरा भी रोती रहती,न्याय करता कौन।
कटते जंगल गंदी नदियाँ,मनुज रहते मौन।
प्राण वायु होते अब महँगे, बस यही सन्देश।
धरती देखो प्राण मांगती,दे रही निर्देश।।
अजय 'मयंक'✍️
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