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शीर्ष...
शीर्षक-बरसात
म...
शीर्षक-बरस...
“
शीर्षक-बरसात
मुक्तक
धरा की देख बैचेनी,.....पवन सौगात ले लाया
तपी थी धूप में धरती,.. गगन बरसात ले आया।
घटा घनघोर है छाई,....लगे पागल हुआ बादल-
सजाकर बूँद बारिश की, चमन बारात ले आया।।
©पंकज प्रियम
”
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