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परिपूर्ण...

परिपूर्ण चेतना बनकर धड़कता है जो दिलमे सदा उस आत्मा से मानव अनजान ही रहता है सदा मानो न ईश्वर को फ़िरभी वो कृपा करता रहता सदा स्वार्थी इंसान दुख पड़ने पर हरि से मांगता है सदा

By અનિરૂધસિંહજી ઝાલા
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