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प्रेम यथार्थ में वो नही जिसे हम समझते है ।
असल में प्रेम एक प्रकार का आत्मिक अनुष्ठान है
जो सिर्फ निश्छल आत्माओँ को ही प्राप्त है इसमें रहते हुए करुणा अर्थात नयन भीग जाना, द्रवित होना सह अनुभूति जैसे भाव रह रह के उभरते है, जैसे कोई दारुण दुख से दुखी हृदय प्रभु को मदद के लिए चीत्कार कर पुकार रहा हो और प्रभु नङ्गे पाओ दौड़े भागे चले आ रहे हों ।।
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
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