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"...
" प्रेम उध्यानका...
" प्रेम...
“
" प्रेम उध्यानका पुष्प हुं मै,
तेरे प्यारकी पुष्पा बनकर आई हुं,
तेरे ज़िवनमें मेरी महेंक फैलाकर" मुरली",
तेरा जिवन प्यारके पुष्पोसे खिलाना चाहती हुं।"
-धनजीभाई गढीया"मुरली"
”
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