STORYMIRROR

प्रेम  "प्...

प्रेम  "प्रेम के लिए इतना ही बस काफी है कि कोई मनुष्य हमें अच्छा लगे किसी के रूप को स्वयं देख कर हम तुरंत मोहित होकर उससे प्रेम कर सकते हैं, पर उसके रूप की प्रशंसा किसी दूसरे से सुनकर तुरंत हमारा प्रेम नहीं उमड़ पड़ेगा। कुछ काल तक हमारा भाव लोभ के रूप में रहेगा, पीछे वह प्रेम में परिणत हो सकता है। बात यह है कि प्रेम एकमात्र अपने ही अनुभव पर निर्भर रहता है!" (चिंतामणि रामचंद्र शुक्ल)

By usha yadav
 186


More hindi quote from usha yadav
0 Likes   0 Comments
10 Likes   0 Comments
22 Likes   0 Comments
20 Likes   0 Comments
22 Likes   0 Comments