बड़ा ही सटीक लिखा है रामचंद्र शुक्ल ने "नकल ऊपरी बातों की हो सकती है हृदय की नहीं, पर ह्रदय पहचानने के लिए ह्रदय चाहिए, चेहरे पर की दो आंखों से ही काम नहीं चल सकता"। ( 'हिंदी साहित्य का इतिहास' रामचंद्र शुक्ल)
जिंदगी में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं। जो दिल से जुड़े होते हैं। हर रिश्ते का अपना एक अलग ही महत्व होता है। ऐसा ही एक प्यारा सा रिश्ता भाई का होता है। भाई जो मां के ना रहने पर भी मां की तरह प्यार करता है। पिता की वह सारी जिम्मेदारियां निभाते एक दोस्त की तरह हमेशा हमारे साथ रहता है। आज आपको गए एक महीना अवश्य हो गया। परंतु ऐसा लगता ही नहीं कि आप कहीं चले गए है,ऐसा लगता हैं जैसे आप यहीं पर हैं हमारे पास
सकारात्मक सोच आज जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है जहां सकारात्मक सोच का होना माना थोड़ा मुश्किल है,परंतु नामुमकिन बिल्कुल नहीं। वो कहते हैं ना "मन के हारे हार ओर मन के जीते जीत"यह कहावत आज के समय में बिल्कुल सटीक बैठती । जब हमारे मन में सकारात्मक सोच होती है तो हम अवश्य उस कार्य में से नकारात्मकता को उखाड़ फैंकते हैं। सकारात्मक सोच जहां हमें दिशा प्रदान करता है वही हमारे विचारों में भी बढ़ोतरी और
रंगों की दुनिया रंगों की अजीब दुनिया होती है। यदि किसी के जीवन में प्रवेश करे तो उसका जीवन रंगों से भर उठता हैं। उसी प्रकार यदि ये जीवन से निकल जाए तो उसका जीवन नीरसता सा हो जाता है। है ना अजीब! निराला यह रंगों का खेल । प्रकृति भी अपने अंदर अपार रंगों का समावेश किए हुए हैं। जैसे पेड़-पौधे ,इंसान और ये छोटे-छोटे से जीव जिन्हें यह भी नहीं पता है कि उनका जीवन क्षणभंगुर है।बहुत ही बेहतरीन
मेरे लिए खुशी खुद पर विश्वास करने के सामान है। खुशी अकेले रहकर या खुद तक सीमित रखकर नहीं प्राप्त की जाती है। यह तो हर व्यक्ति के मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। जब हम किसी व्यक्ति की नि:स्वार्थ भाव से सहायता करते हैं, जो वाकई उस समय जरूरतमंद है तो जो अनुभूति या खुशी हमें प्राप्त होती है उसे हम अपने शब्दों में बयां नहीं कर सकते। हर छोटी-छोटी बातों या कार्य के अंदर खुशियां ढूंढना और लोगों में खुशिय
प्रेम "प्रेम के लिए इतना ही बस काफी है कि कोई मनुष्य हमें अच्छा लगे किसी के रूप को स्वयं देख कर हम तुरंत मोहित होकर उससे प्रेम कर सकते हैं, पर उसके रूप की प्रशंसा किसी दूसरे से सुनकर तुरंत हमारा प्रेम नहीं उमड़ पड़ेगा। कुछ काल तक हमारा भाव लोभ के रूप में रहेगा, पीछे वह प्रेम में परिणत हो सकता है। बात यह है कि प्रेम एकमात्र अपने ही अनुभव पर निर्भर रहता है!" (चिंतामणि रामचंद्र शुक्ल)