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नारी
बग़ावत का शोर गूंजता है ज़हन में .........., ख़ामोश है फिर रहती ,
दर्द हूकँता है जिस्म में उसके ...........चुपी ओढ़े फिर भी है रहती ।
क्यू है बेबस इतनी,अपनों के ही ख़ातिर ..अपनों ने ही छली है ,
बना पत्थर का खुद को , हँसते लबों से ज़ख़्मों को है सिलती रहती ।।
@रेणुका
#Happy Women’s Day 🌺
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