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न पूछ कवि...

न पूछ कवि .... इन्तजार के कितने सावन सूखे बीते हैं सूख चुकी अश्कों की जमीं भी अब तो भीतर तक रीते हैं ....... कविता पारीक ' कवि'

By Kavita Pareek
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