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मुझमें हवा...

मुझमें हवा के रुख बदलने की ताब है टूटा हूं बिखरा नही अभी भी मुझे खेलना कुछ दांव है भले सर पे ठहरने को छत नहीं लेकिन मेरे ऊपर मां बाबा का छांव है हिम्मत टूट जाती है मेरी फिर भी मुझे मेरे सपने पूरे करने है यह बात याद दिलाता मेरा गांव है

By राजेश "बनारसी बाबू"
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