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मुझको...
मुझको अंधेरे में...
मुझको...
“
मुझको अंधेरे में रखा,
उजालों से क्या बैर था,
मुहब्बत हमारी भी थी,
उम्र का फिर कहाँ होश था.
फ़ासले यूँ बढ़ते गये,
शायद उसमें ही कोई दोष था.
”
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