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मन की राख ...

मन की राख दबी -चिंगारी- सा दहके - वक्त यहाँ -वहाँ...! सिसकती - सी चाहेँ - दम -तोड़ती अपने आप न जाने कहाँ... कहाँ..!

By Sunita Sharma
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