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मेरे देश...

मेरे देश में समाये हैं सारे मजहब, प्रेम और शांति के वार्ता को देता है अदब, डुबाना चाहा कितनो ने इसका आफ़ताब, भूल गए वो की काँटों के बीच में भी खिलता है गुलाब |

By Shashikant Das
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