“
मे तुम्हारे दर्शन देखने केलिए कल आने का सोच रहा हूँ ,
मगर तुम थो आज ही गलत बस पे बिठाके तेरे ही सामने ले आये, और बस रुकवाके दर्शन भी दे दिए सामने से,
तेरे कानों से मेरे मन की आवास भी चुप नहीं सकते दगडूशेठ लम्बकर्ण,
योगाधिप को प्रणाम करने का सौभाग्य देने केलिए दन्यवाद मेरे विघ्नेश्वर।
”