“
मौजूद तो हूँ मैं दुनिया की भीड़ में
पर अब तलाश अपने वजूद की हैं
"तलाश मेरी खत्म होती नहीं है
रोज सीढियां चढ़ते चढते ख़ुद फिर भी में सिमट जाता हूं
मैं हर रोज़ खुद में खुद को ढूंढ लेता हूं
ख्वाहिश बड़ी मुश्किल है सपनों की दुनिया को पाने में
फिर भी ढूंढता रहता हूं खुद को ख़ुद की तलाश में
”