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कुछ तो है...

कुछ तो है जिसकी पर्दा दारी है चारो ओर फैली रुशवाई है मक्कारो और छल कपटो का डेरा है यहां चैन अमन के नाम पे लूटता है जहां झूठ बिकती रही तिजारत में ताउम्र सच की ना कोई खातिरदारी है अब हम सब की जिम्मेदारी है आज फिर बलात्कार शिकार युवती न्यायालय में हार गई पैसों की दुनिया क्या होती है सच की कीमत क्या होती है आज एक गरीब फिर से पहचान गई आज सच फिर से मायूस हुआ झूठ की महफिल जश्ने ए शाम हुई

By राजेश "बनारसी बाबू"
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