“
कट-कट कर गिर रहे हैं अंगूठे
साथ ही कट कर गिरता है भविष्य
आज कोई द्रोण नहीं
एकलव्य ही काटता है दूसरे एकलव्य को आरक्षण से।
मिटती हैं सड़ी-गली परम्पराएं
पर सत्य और न्याय भी
मिटता है क्या?
एकलव्य का अंगूठा अखरता है!
सवर्णों का अंगूठा जँचता है क्या?
-अभिषेक पाण्डेय
”