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कसूर नजरों...

कसूर नजरों का था जो दिल लगा बैठे, इश्क के फरेब में सल्तनत लुटा बैठे, गालीब हम भी कभी इंसान हुआ करते थे, नजरों के जाम मे वो सब कुछ गवा बैठे।

By राजेश "बनारसी बाबू"
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