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ख्वाहिष...
ख्वाहिष थी जरूर...
ख्वाहिष थी...
“
ख्वाहिष थी जरूर असमान छुने की,
मंजिल थी करिब रस्ते पे चल रही,
पर हमारा नसीब इतना सुहाना कहा??
उसे तो खवाहिष का मतलब भी ना पता था!
”
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