“
कहीं रोशनी तो कहीं अंधेरा है
ऊपर वाले तूने ये कैसा खेल खेला है
कोई बच्चा खाने को तड़प रहा है
तो कोई रईस आज रेस्टोरेंट में खाना
छोड़ आया है
कही रोशनी तो कही अंधेरा है
आज इंसान मानवता छोड़ आया है
एक बच्चा कूड़ा बिनने को मजबूर रहा
तो बगल से एक बच्चा बैग लिए मुंह
बिचकाते हुए गुजर गया
ऊपर वाले ये कैसा रेला है
कही अमीरों की ऊंची बिल्डिंग
तो कही गरीबों की झोपड़ी का मेला है
क्यू आज अमीरों में अमीरी बढ़ रह
”