“
कभी पल-पल में रुठ जाया करती है,
कभी बात-बात पे झगड़ जाया करती है,
कोई न जाने, कितने दर्द छिपाए रखती है वो शीने में,
हां वो मां ही है, जो वक्त-वक्त में हमें संभाला करती है।
कोई भेद हो मन में , कोई भाव हो दिल में,
वो सब, बाहों में, भूला दिया करती है,
कोई क्या जाने, कितने सितम झेल कर लाई है हमें इस जहां में,
हां वो मां ही है, जो हर गम, सहला कर तबाह कर दिया करती है।
"दीक्षु"
”