“
जो तुम्हारे लिए सही,वह मेरे लिए भी सही,
जो मेरे लिए गलत,वह तुम्हारे लिए भी गलत,
अपनी झूठी मर्यादा का दायरा अगर विस्तृत कर सकते हो ,
अपनी छोटी सोच के पिंजरे से बाहर निकल सकते हो,
तब ही समानता की बात करने के अधिकारी बन सकते हो,
नहीं तो तुम्हारे सारे पाखण्ड तुम्हें मुबारक ।
”