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जिक्र शामो...

जिक्र शामो शहर नहीं होता अब दीवारों पे कोई असर नही होता हम अपनी मोहब्बत ए दास्तान सुनाते रहे उनपे हमारी वफाओ का कोई असर नहीं होता

By राजेश "बनारसी बाबू"
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