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होता हैं...

होता हैं कही हिज्र , मुलाकात कही है है प्यार मुझे उससे, उसे एहसास नही है गले मिलती रही किसी गैर से वो वफा के नाम पे मुझे छलती रही वो और इल्जाम लगाए बैठी है मुझपे बेवफाई का जो खुद वफा ए इश्क की गलियों से कोसों दूर खड़ी है

By राजेश "बनारसी बाबू"
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