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हमारी...

हमारी नादानीयों से पुरखों के सदियों से जमें जमायें। सामाजिक कानून कायदे मर्यादाएंधव्स्त हो रही हैं। हम जिसेंआजादी कि अभिव्यक्ति समझ रहे हैं। यह बड़ीभारीभूल कर रहें हैं। जब फाऊंडेशन नहीं बचैंगा। तो सामाजिक ढ़ाचा कैसे बचैंगा। इसलिए हम समय रहते संम्भल जायें। अन्यथा फिर कुछ नहीं बचैगा। रूढिवादी सोच बताकर पाशचात्य सोच को बढावा दे रहे हैं। यह एक दिनभारतीय संस्कृति पर बहुतभारी पड़ेंगी।

By Devaram Bishnoi
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