“
हकीकत में जो हुआ उसे न जेहन में उतार पा रहा हूं
खुद से खुद को इस कदर समझा रहा हूं
ये कैसा मंजर था जो आखों के सामने से गुजर गया
हकीकत तो कुछ और ही था जो पल भर में बिखर गया
सामने मेरे आशियाना बिखरा पड़ा था
सामने से मैं खुद ही लूटा पड़ा था
फिर भी मैं खुद को भरमा रहा हू
फिर भी मैं खुद को समझा रहा हूं
जो हुआ मैं उसे एक बुरा स्वपन बतला रहा हूं
हकीकत को भी मैं झूठ बतला रहा हूं
खुद से खुद को मैं झूठला रह
”