“
हिन्दी को
तुकबंदी के लिए
कविगण
भारत की बिंदी बताते हैं।
हिन्दी को बिंदी कहना
बंद करें
भारत माँ के देह पर
मांग टीका से
लेकर
करधनी तक
कंठहार से लेकर
बेशकीमती रत्नजड़ित
कंगन तक है ...
बिंदी की कीमत
रुपये दो रुपये
लेकिन कंगन
कंठहार
का मूल्य अमूल्य है
सो हिन्दी बिंदी
होगी कवियों के लिए
हमारे लिए हिन्दी
भारत के देह का स्वर्ण -आभूषण है
हमारे लिए हिन्दी मणि जड़ित कंगन है।
@ गौतम
”