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हे त्रिलोक...
हे त्रिलोक...
हे त्रिलोक...
“
हे त्रिलोक स्वामी
एक ही अरज हमारी
इस धरा पर पूर्ण
हो रिश्त मेरा
तप शिव की भस्म बन जाऊं
और गंगा में बह कर उनकी जटा में विराज विराजमान हो जाऊं
”
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