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दर बदर यू...

दर बदर यू ही फिरता रहा, कभी सूरज सा तेज़ सवेरो मे तो कभी चंद्र के शीतल अंधेरों में। कभी खुशियों के पंख लगाए तो कभी अहसानों के बोझ तले। ज़िंदगी के हर मोड़ पे कुछ नया मिलता रहा। जाने अंजाने में एक भूल कर बैठा, मैं इंसानों के बस्ती मे, भगवान खोजता रहा।

By Denzil Vonlintzgy
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