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दो...
दो प्यार के राही...
दो प्यार के...
“
दो प्यार के राही के बिच
अपनी टांग अड़ाई है
ये बैल मुझे मारे क्यू
ऐसी किस्मत पाई है
- गुड्डू सिकन्द्राबादी
”
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