“
चांद को पाना मुमकिन नहीं, फिर भी आशाऐं कम कहा, मैं अगर छु लुं तुझे फिर तू चांद कहा/
नजरें थी जबतक टिकी तुझपे, लगा हर मुसकान मेरी हैं/
नजरें झुकीं तब जहाँ दिखा, जग की निगाहें तुझपे है/
फिर भी निगाहों को रोक कहा, जब देखुँ तुझे फिर ये जहाँ कहा/
पा लुं तुझे आशा यही, फिर सच और झूठ में फर्क कहा/
”