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चांद को...

चांद को पाना मुमकिन नहीं, फिर भी आशाऐं कम कहा, मैं अगर छु लुं तुझे फिर तू चांद कहा/ नजरें थी जबतक टिकी तुझपे, लगा हर मुसकान मेरी हैं/ नजरें झुकीं तब जहाँ दिखा, जग की निगाहें तुझपे है/ फिर भी निगाहों को रोक कहा, जब देखुँ तुझे फिर ये जहाँ कहा/ पा लुं तुझे आशा यही, फिर सच और झूठ में फर्क कहा/

By Shubham Kumar
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